ज्ञात हो कि विशाखा जजमेंट सुप्रीम कोर्ट की तरफ से तब दिया गया था जब उसके सामने विशाखा बनाम राजस्थान सरकार का मसला आया था। यह मसला राजस्थान के महिला कल्याण के कार्यक्रम ‘महिला सामाख्या’ में कार्यरत एक साथिन भंवरी देवी के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना से जुड़ा था। भंवरी देवी बलात्कार कांड ने उस दौर में तमाम महिला संगठनों को उद्वेलित किया था और उसे न्याय दिलाने के लिए देश भर में जबर्दस्त प्रदर्शन हुए थे। भंवरी ने अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए गांव में एक दबंग परिवार में बालविवाह रोकने के लिए थाने में शिकायत की थी जिससे नाराज उक्त परिवार के चार लोगों ने उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया था। मामला बाद में कोर्ट में पहुंचा और उसने कामकाजी महिलाओं की सुरक्षा को लेकर मील का पत्थर साबित होने वाला फैसला सुनाया था कि हर महिला कर्मचारी का कार्यस्थल पर यौनहिंसा से बचाव उसका संवैधानिक अधिकार है और इसे सुरक्षित करने की जिम्मेदारी मालिक तथा सरकार दोनों पर डाली गयी। हमारा संविधान बिना जेंडर, जाति, नस्लभेद के कोई भी पेशा चुनने का अधिकार देता है तथा साथ में अपने हर नागरिक के लिए गरिमामय जीवन जीने का हक भी देता है। संविधानप्रदत्त इन्हीं अधिकारों के आधार पर यह जजमेंट दिया गया था। इसी के बाद से कार्यस्थलों को सुरक्षित बनाने के लिए अलग से स्पष्ट कानून की मांग होती रही है। यघपि सरकार को यह काम स्वत: ही पहल लेकर करना चाहिए था क्योंकि भारतीय समाज में व्याप्त असुरक्षित माहौल से समाज और सरकार अनभिज्ञ नहीं है। जैसे-जैसे महिलाओं का सार्वजनिक दायरे में प्रवेश बढ़ता गया है वे उतनी ही बड़ी मात्रा में यौन हिंसा का शिकार होती गयी हैं। यूं घर-बाहर के अन्य सामाजिक क्षेत्र भी सुरक्षा के लिहाज से संकटग्रस्त ही रहे हैं, लेकिन नौकरीवाली जगह को विशेषत: सुरक्षित बनाने के लिए जवाबदेही तय करनेवाली बात थी। जानने योग्य है कि विशाखा जजमेंट के तुरन्त बाद तत्कालीन सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने देश भर के संस्थानों तथा शिक्षण संस्थानों को निर्देश जारी किया (13 अगस्त 1997) कि सभी संस्थान तथा मालिक अपने यहां यौन हिंसा से बचाव के लिए गाइडलाइन तैयार करें। यह भी जानने योग्य है कि इसी जजमेंट को आधार बनाते हुए दिल्ली में जेएनयू तथा दिल्ली विश्वविघालय ने अपने यहां अधिनियमों का निर्माण किया है। छात्रों-कर्मचारियों-शिक्षकों की जागरूकता के चलते इस पर एक हद तक अमल भी करना पड़ा है, कई यौन उत्पीड़क अध्यापक कर्मचारी दंडित भी हुए हैं लेकिन अब भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। सरकार तो मात्र निर्देश जारी करके निश्ंिचत हो गयी जबकि उसे इस जजमेंट के बाद खयाल आना चाहिए था कि इसे कानूनी शक्ल दी जाए। यह गाइडलाइन हैं और निश्चित ही उसकी सीमाएं हैं। मालिक, अभियोजक/ एम्प्लॉयर या कोई भी अन्य संस्थान बाध्य नहीं है कि अपने यहां यौन उत्पीड़न विरोधी कमेटियां बनाए ही या बचाव का उपाय न करने पर सजा का प्रावधान हो। जस्टिस काटजू के सवाल ने इस मुद्दे की तरफ नए सिरे से ध्यान आकर्षित किया है। अब सरकार को बताना चाहिए कि वह कब तक बिना कानून के सिर्फ अदालती जजमेंट के आधार पर कामचलाऊ रवैया अख्तियार किए रहेगी। कोर्ट ने कम से कम अपने फैसले के आधार पर महिलाओं के लिए सुरक्षित कार्यस्थल मुहैया कराने का प्रयास किया, लेकिन इस मामले में कानूनी बाध्यतावाली जवाबदेही संसद और प्रशासन को ही सुनिश्चित करनी है। अब न्यायालय अपने लिए जो रास्ता तय करे किन्तु उसका यह कदम जनहित में था और कोई भी प्रगतिशील न्यायप्रिय तथा बराबरी में विश्वास रखनेवाला व्यक्ति इसे जरूरी कदम मानेगा।
कुरुक्षेत्र के कांग्रेसी सांसद नवीन जिंदल के घर का घेराव करते हुए खाप पंचायत ने समान गोत्र में शादी न करने की बात कही। खाप पंचायतों का पक्ष लेते हुए जिदल कहा है कि वह इस मामले को कांग्रेस पार्टी और संसद के सामने ले जाएंगे।
जिंदल ने कहा, मैं खाप पंचायत के समान गौत्र में शादी न करने के पक्ष में हूं, मैं उनकी भावनाओं को संसद और कांग्रेस के सामने ले कर जाऊंगा।साथ ही उन्होंने कहा कि वो समाज में चल रही इस दोषपूर्ण नीति पर अवाज उठाएंगे। हालांकि उन्होंने यह साफ नहीं किया कि वो किस समाजिक बुराई की बात कर रहे हैं।
जिंदल ने कहा, मैं खाप पंचायत के समान गौत्र में शादी न करने के पक्ष में हूं, मैं उनकी भावनाओं को संसद और कांग्रेस के सामने ले कर जाऊंगा।साथ ही उन्होंने कहा कि वो समाज में चल रही इस दोषपूर्ण नीति पर अवाज उठाएंगे। हालांकि उन्होंने यह साफ नहीं किया कि वो किस समाजिक बुराई की बात कर रहे हैं।
अपनी जिंदगी में अपना हमसफर चुनने की व्यक्तिगत आजादी के बीच इन दिनों रस्साकसी चल रही है। हरियाणा के ज्यादतार लोग यह नहीं मानते है कि समान गोत्र में शादी करना चाहिए और चाहते कि इस पर बैन लगे।
हिंदू मैरिज एक्ट के अनुसार, जिसमें 50 के दशक में बदलाव किया गया था जिसमें कहा गया है कि समान गोत्र में शादी करने पर कोई पाबंदी नहीं है। एजेंसियों की खबरों के अनुसार जिंदल जोकि खाप का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं बताते है कि यह खाप पंचायत जोकि महान शासक अशोक और हर्षवर्धन के समय से समाज को नई दिशा देती आ रही हैं। खाप पंचायत की प्रशंसा करते हुए कहा है कि खाप पंचायत मानवता के लिए अपनी सेवाएं मानव समाज के लिए देते आए हैं।
सर्व जातीय महापंचायत कमेटी ने कहा, 'हमनें जिंदल और स्थानीय प्रतिनिधित्व से इस विषय में बात कर ली है'
सर्व जातीय महापंचायत कमेटी ने कहा, 'हमनें जिंदल और स्थानीय प्रतिनिधित्व से इस विषय में बात कर ली है'
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दयानंद शर्मा, चंडीगढ़
‘खाप पंचायतों को इस तरह का कोई अधिकार नहीं है कि वे किसी दंपती को भाई-बहन बना दें और जो उसके आदेश का पालन न करे, उसे मौत के घाट उतार दें। यह एक सामाजिक बुराई है। इन खाप पंचायतों को समानांतर न्याय पालिका चलाने की अनुमति नहीं दी जा सकती। ‘
यह टिप्पणी पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मुकुल मुदगल व जस्टिस जसबीर सिंह की खंडपीठ ने खेडी महम में खाप पंचायत द्वारा दंपती को भाई-बहन घोषित करने पर एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए की। हालांकि खंडपीठ ने कहा कि हम खाप पंचायतों की परंपराओं का आदर करते हैं। इन परंपराओं के अनुसार कुछ विवाह अवैध हो सकते हैं।
याचिका में खाप पंचायतों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है। मामले की सुनवाई के दौरान एडवाकेट नव किरण सिंह ने एक समाचार पत्र में छपी उस खबर की तरफ कोर्ट का ध्यान दिलाया जिसमें रोहतक के गांव खेड़ी महम में एक दंपती को भाई-बहन की तरह रहने का आदेश जारी किया गया था। इस दंपती की तीन साल पूर्व मैरिज हुई थी और उनका लगभग एक साल का बच्चा भी है। इस पर चीफ जस्टिस ने हरियाणा के एडीशनल एडवोकेट जनरल को कहा कि वो कोर्ट को यह बताएं कि इस समाचार में कितनी सच्चाई है।
चीफ जस्टिस ने कहा कि अगर यह सच है तो यह बहुत गलत है। सरकार को इस पर सोचना चाहिए और ठोस कदम उठाना चाहिए। खंडपीठ ने हरियाणा सरकार को दंपती को उचित सुरक्षा मुहैया करवाने का भी आदेश जारी किया।
चीफ जस्टिस ने एडीशनल एडवोकेट जनरल को कहा कि यह उनका क्षेत्र है। उनको देखना चाहिए कि उनके राज्य में क्या हो रहा है और क्या कदम उठाने चाहिए। उन्होंने कहा कि आप यह देखें कि गैर कानूनी कार्य करने वाली खाप पंचायतों का प्रबंधन किन लोगों के हाथों में है और उनके खिलाफ एक्शन लें। खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान पूछा कि आप के राज्य में ऐसे कितने मामले हो चुके हैं। साथ ही कटाक्ष किया कि क्या वे सभी सिद्धांतों पर आधारित हैं।
वैसे खाप पंचायतों द्वारा दिए गए निर्णयों के खिलाफ हाईकोर्ट की खंडपीठ का रूख सदा ही कड़ा रहा है। इस मामले में पहले भी हाईकोर्ट हरियाणा सरकार से यह पूछ चुका है कि वह कानून के खिलाफ काम करने वाली व तुगलकी फरमान जारी करने वाली खाप पंचायतों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं कर रही। हाईकोर्ट ने कहा था कि इन पंचायतों द्वारा इस तरह के आदेश जारी करना कानूनी अवैध है। इस तरह के आदेश कंगारू ला की तरह हैं और उनको रोकना जरूरी है। यह अफगानिस्तान नही है, यह भारत है। यहां पर तालिबान कोर्ट को मान्यता नहीं दी जा सकती। चीफ जस्टिस ने यह बात उस वकील को कही थी जिसने कोर्ट में एक जवाब फाइल कर खाप पंचायतों के कदम व उनकी कार्रवाई को सही ठहराया था।
ज्ञात रहे कि गैर सरकारी संगठन लायर फार ह्यूमन राइट इंटरनेशनल ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल कर खाप पंचायतों द्वारा गैर कानूनी व तानाशाही आदेश जारी करने के खिलाफ कार्रवाई करने व इन खाप पंचायतों पर रोक लगाने की माग की है। साथ ही याचिका में माग की गई है कि सिंगवाल नरवाना में खाप पंचायत द्वारा मारे गए युवक वेदपाल के मामले की जाच के लिए वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी की अगुवाई में एक एसआईटी बनाई जाए जो हाईकोर्ट की निगरानी में काम करे। इस मामले की सुनवाई के लिए एक स्पेशल कोर्ट भी बनाई जाए जो इस मामले में शामिल लोगों को जल्दी सजा दे सके।
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