सोमवार, 18 अप्रैल 2011

जन लोकपाल बिल?

जन लोकपाल बिल-
देश में गहरी जड़ें जमा चुके भ्रष्टाचार को रोकने के लिए जन लोकपाल बिल लाने की मांग करते हुए अन्ना हजारे ने मंगलवार को आमरण अनशन । जंतर - मंतर पर सामाजिक कार्यकर्ता हजारे को सपोर्ट करने हजारों लोग जुटे। आइए जानते हैं जन लोकपाल बिल के बारे में...
- इस कानून के तहत केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त का गठन होगा।
-यह संस्था इलेक्शन कमिशन और सुप्रीम कोर्ट की तरह सरकार से स्वतंत्र होगी।
- किसी भी मुकदमे की जांच एक साल के भीतर पूरी होगी। ट्रायल अगले एक साल में पूरा होगा।
- भ्रष्ट नेता, अधिकारी या जज को 2 साल के भीतर जेल भेजा जाएगा।
- भ्रष्टाचार की वजह से सरकार को जो नुकसान हुआ है अपराध साबित होने पर उसे दोषी से वसूला जाएगा।
- अगर किसी नागरिक का काम तय समय में नहीं होता तो लोकपाल दोषी अफसर पर जुर्माना लगाएगा जो शिकायतकर्ता को मुआवजे के तौर पर मिलेगा।
- लोकपाल के सदस्यों का चयन जज, नागरिक और संवैधानिक संस्थाएं मिलकर करेंगी। नेताओं का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा।
- लोकपाल/ लोक आयुक्तों का काम पूरी तरह पारदर्शी होगा। लोकपाल के किसी भी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत आने पर उसकी जांच 2 महीने में पूरी कर उसे बर्खास्त कर दिया जाएगा।
- सीवीसी, विजिलेंस विभाग और सीबीआई के ऐंटि-करप्शन विभाग का लोकपाल में विलय हो जाएगा।
- लोकपाल को किसी जज, नेता या अफसर के खिलाफ जांच करने और मुकदमा चलाने के लिए पूरी शक्ति और व्यवस्था होगी।
-जस्टिस संतोष हेगड़े, प्रशांत भूषण, सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल ने यह बिल जनता के साथ विचार विमर्श के बाद तैयार किया है। 

न्यायाधीश संतोष हेगड़े, प्रशांत भूषण और अरविंद केजरीवाल द्वारा बनाया गया यह विधेयक लोगों द्वारा वेबसाइट पर दी गई प्रतिक्रिया और जनता के साथ विचार-विमर्श के बाद तैयार किया गया है। इस बिल को शांति भूषण, जेएम लिंग्दोह, किरन बेदी, अन्ना हजारे आदि का समर्थन प्राप्त है। इस बिल की प्रति प्रधानमंत्री एवं सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को एक दिसम्बर को भेजा गया था।
1. इस कानून के अंतर्गत, केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त का गठन होगा।
2. यह संस्था निर्वाचन आयोग और सुप्रीम कोर्ट की तरह सरकार से स्वतंत्र होगी। कोई भी नेता या सरकारी अधिकारी जांच की प्रक्रिया को प्रभावित नहीं कर पाएगा।
3. भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कई सालों तक मुकदमे लम्बित नहीं रहेंगे। किसी भी मुकदमे की जांच एक साल के भीतर पूरी होगी। ट्रायल अगले एक साल में पूरा होगा और भ्रष्ट नेता, अधिकारी या न्यायाधीश को दो साल के भीतर जेल भेजा जाएगा।
4. अपराध सिद्ध होने पर भ्रष्टाचारियों द्वारा सरकार को हुए घाटे को वसूल किया जाएगा।
5. यह आम नागरिक की कैसे मदद करेगा
यदि किसी नागरिक का काम तय समय सीमा में नहीं होता, तो लोकपाल जिम्मेदार अधिकारी पर जुर्माना लगाएगा और वह जुर्माना शिकायतकर्ता को मुआवजे के रूप में मिलेगा।
6. अगर आपका राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र, पासपोर्ट आदि तय समय सीमा के भीतर नहीं बनता है या पुलिस आपकी शिकायत दर्ज नहीं करती तो आप इसकी शिकायत लोकपाल से कर सकते हैं और उसे यह काम एक महीने के भीतर कराना होगा। आप किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार की शिकायत लोकपाल से कर सकते हैं जैसे सरकारी राशन की कालाबाजारी, सड़क बनाने में गुणवत्ता की अनदेखी, पंचायत निधि का दुरुपयोग। लोकपाल को इसकी जांच एक साल के भीतर पूरी करनी होगी। सुनवाई अगले एक साल में पूरी होगी और दोषी को दो साल के भीतर जेल भेजा जाएगा।
7. क्या सरकार भ्रष्ट और कमजोर लोगों को लोकपाल का सदस्य नहीं बनाना चाहेगी?
ये मुमकिन नहीं है क्योंकि लोकपाल के सदस्यों का चयन न्यायाधीशों, नागरिकों और संवैधानिक संस्थानों द्वारा किया जाएगा न कि नेताओं द्वारा। इनकी नियुक्ति पारदर्शी तरीके से और जनता की भागीदारी से होगी।
8. अगर लोकपाल में काम करने वाले अधिकारी भ्रष्ट पाए गए तो?
लोकपाल/लोकायुक्तों का कामकाज पूरी तरह पारदर्शी होगा। लोकपाल के किसी भी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत आने पर उसकी जांच अधिकतम दो महीने में पूरी कर उसे बर्खास्त कर दिया जाएगा।
9. मौजूदा भ्रष्टाचार निरोधक संस्थानों का क्या होगा?
सीवीसी, विजिलेंस विभाग, सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक विभाग (अंटी कारप्शन डिपार्टमेंट) का लोकपाल में विलय कर दिया जाएगा। लोकपाल को किसी न्यायाधीश, नेता या अधिकारी के खिलाफ जांच करने व मुकदमा चलाने के लिए पूर्ण शक्ति और व्यवस्था भी होगी।

जनता द्वारा तैयार जनता के लिए बिल

पहली बार एक विधेयक का प्रस्ताव देश के नागरिक समाज की ओर से संसद में विचार करने के लिए दिया गया है। इस विधेयक में सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों, चाहे वह प्रधानमंत्री, सुप्रीमकोर्ट के न्यायाधीश या फिर अफसरशाही हो, के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की न केवल निष्पक्ष जांच करने की ताकत है बल्कि उन्हें दंडित भी करने की क्षमता है। इसमें लूटखसोट द्वारा अर्जित धन भी जनता को वापस दिलाने का प्रावधान किया गया है। इसलिए इसका महत्व लगभग संविधान के बराबर है। - स्वामी अग्निवेश

हांगकांग में 1974 में जन लोकपाल जैसा कानून बनाया गया था, जिससे वहां से भ्रष्टाचार समाप्त करने में कामयाबी मिली। अगर यह कानून बना दिया गया तो यहां पर भी भ्रष्टाचार को नष्ट किया जा सकता है। पारित कराने के लिए जो राजनीतिक दल इस विधेयक का समर्थन करेंगे, वे भ्रष्टाचार का खात्मा चाहते हैं और जो इसका विरोध करेंगे उनकी मंशा कुछ और ही है। – शांति भूषण

जो बिल सरकार ने तैयार किया है उसका कोई औचित्य नहीं है। उस कानून में लोकपाल को कोई अधिकार नहीं प्राप्त है। अगर लोकपाल को कुछ अधिकार देना है तो उसमें जन लोकपाल विधेयक के प्रावधानों को शामिल किया जाए। – एन संतोष हेगड़े

अरविंद केजरीवाल, प्रशांत भूषण और संतोष हेगड़े द्वारा जन लोकपाल विधेयक का मूल आधार तैयार किया गया। बाद में इस विधेयक पर अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़े विद्वानों और गण्यमान्य लोगों की राय को भी इसमें शामिल किया गया। इसके अलावा देश भर में विभिन्न मंचों पर जनता की राय को भी इस विधेयक में जगह दी गई। इस तरह से यह जनता के द्वारा तैयार किया गया विधेयक बन चुका है। आइए, जानते हैं इस विधेयक के मूल स्वरूप के सूत्रधारों के बारे में।

अरविंद केजरीवाल: 43 साल के केजरीवाल आइआइटी खड़गपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक हैं । 1992 में भारतीय राजस्व सेवा में आयकर आयुक्त कार्यालय में तैनात रहे। भारतीय राजस्व सेवा में साल 2000 तक काम करने के बाद सरकारी विभागों में घूसखोरी के खिलाफ लड़ाई के लिए परिवर्तन नामक संस्था का गठन किया। इस संस्था ने आयकर और बिजली जैसे सरकारी विभागों में लोगों की शिकायतों को दूर करने में बहुत मदद की। साल 2001 से यह संस्था सूचना के अधिकार और इसकेउपयोग करने के तरीके को लेकर जनता को जागरूक कर रही है। इसके प्रयासों से ही सूचना का अधिकार कानून आज आम आदमी की लाठी बनकर भ्रष्टाचार से न केवल लड़ रहा है बल्कि सरकार की जवाबदेही भी तय कर रहा है। सूचना के अधिकार पर किए गए काम पर अगस्त 2006 में अरविंद केजरीवाल को रमन मैगसेसे पुरस्कार से नवाजा गया.

प्रशांत भूषण: देश के पूर्व कानून मंत्री और वरिष्ठ अधिवक्ता शांति भूषण के बेटे प्रशांत भूषण भी देश के जाने-माने अधिवक्ता हैं । न्यायिक सत्यनिष्ठा और गुणवत्ता की साख बचाने के लिए 55 साल के प्रशांत भूषण ने समय-समय पर अहम मसलों को उठाया है। इन्होंने ही देश के मुख्य न्यायाधीश की बेंच को पीएफ घोटाले की सुनवाई ओपेन कोर्ट में करने पर विवश किया। बेंच इस मामले की सुनवाई चेम्बर्स में करना चाहती थी। न्यायपालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी लड़ाई के लिए दुनिया भर में चर्चित प्रशांत भूषण जजों की नियुक्त प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने की भी लड़ाई लड़ रहे हैं ।

एन संतोष हेगड़े: 71 साल के संतोष हेगड़े पूर्व लोकसभा अध्यक्ष केएस हेगड़े के पुत्र हैं । फरवरी 1984 में कर्नाटक राज्य के एडवोकेट जनरल बनाए गए और अगस्त 1988 तक इस पद पर आसीन रहे। दिसंबर 1989 से नवंबर 1990 तक इन्होंने देश के एडिशनल सॉलीसिटर जनरल की जिम्मेदारी निभाई। 25 अप्रैल 1998 को ये फिर से सॉलीसिटर जनरल ऑफ इंडिया नियुक्त किए गए। आठ जनवरी 1999 को एन संतोष हेगड़े सुप्रीमकोर्ट के न्यायाधीश बने। जून 2005 में वे इस पद से सेवानिवृत्त हुए। तीन अगस्त 2006 को पांच साल के कार्यकाल के लिए इनको कर्नाटक का लोकायुक्त बनाया गया।

जेएम लिंगदोह: देश के उत्तरी राज्य मेघालय के खासी जनजाति से संबंध रखने वाले जेम्स माइकेल लिंगदोह एक जिला जज के बेटे हैं । दिल्ली से अपनी शिक्षा-दीक्षा पूरी करने के बाद महज 22 साल की आयु में वह आइएएस बने। शीघ्र ही वे अपने पेशे के प्रति ईमानदारी बरतने और सच्चाई को लेकर अडिग रहने वालों में शुमार किए जाने लगे। इन्होंने राजनेताओं और स्थानीय अमीरों की जगह दबे-कुचले और असहाय तबके को प्रमुखता दी। 1997 में ये देश के चुनाव आयुक्त बने। 14 जून 2001 को इन्हें देश का मुख्य चुनाव आयुक्त बनाया गया। सात फरवरी 2004 तक इन्होंने कई प्रदेशों में सफल चुनाव कराकर अपनी सफलता का परिचय दिया। साल 2002 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के सफल आयोजन से वहां लोगों ने निडर होकर अपने मतों का प्रयोग किया। गुजरात दंगों के तुरंत बाद वहां चुनाव कराने की मांग को इन्होंने खारिज कर दिया। दंगों से विस्थापित परिवारों और वहां व्याप्त डर के माहौल का हवाला देते हुए अंत तक ये अपने निर्णय पर अडिग रहे। 2003 में सरकारी सेवा क्षेत्र में इनके काम के लिए रमन मैगसेसे पुरस्कार से नवाजा गया।

स्वामी अग्निवेश: 72 साल के स्वामी अग्निवेश ख्यातिप्राप्त सामाजिक कार्यकर्ता हैं । 1977 में ये हरियाणा विधानसभा के सदस्य बने। 1979 से 1982 तक ये वहां के शिक्षा मंत्री भी रहे। 1981 में स्थापित अपने संगठन बांडेड लेबर लिबरेशन फ्रंट द्वारा इन्होंने बंधुआ मजदूरी को खत्म करने का अभियान चलाया। जेनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में इन्होंने दासता और बंधुआ मजदूरी के आधुनिक स्वरूपों का मसला जोरशोर से उठाया। चार सितंबर 1987 को राजस्थान के देवराला में हुए रूपकुंवर सती कांड पर इन्होंने उस गांव के बाहर धरना शुरू किया। बाद में इनके प्रयासों से ही इस कुप्रथा को रोकने का कानून संभव हो सका। हाल में स्वामी अग्निवेश शांति बहाली के लिए नक्सलियों और सरकार के बीच मध्यस्थ भी बने।

खास है जन लोकपाल विधेयक

• अध्यक्ष समेत दस सदस्यों वाली एक लोकपाल संस्था होनी चाहिए.
• भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करने वाली सीबीआइ के हिस्से को इस लोकपाल में शामिल कर दिया जाना चाहिए.
• सीवीसी और विभिन्न विभागों में कार्यरत विजिलेंस विंग्स का लोकपाल में विलय कर दिया जाना चाहिए.
• लोकपाल सरकार से एकदम स्वतंत्र होगा.
• नौकरशाह, राजनेता और जजों पर इनका अधिकार क्षेत्र होगा.
• बगैर किसी एजेंसी की अनुमति के ही कोई जांच शुरू करने का इसे अधिकार होगा.
• जनता को प्रमुख रूप से सरकारी कार्यालयों में रिश्वत मांगने की समस्या से गुजरना पड़ता है। लोकपाल एक.
• अपीलीय प्राधिकरण और निरीक्षक निकाय के तौर पर केंद्र सरकार के सभी कार्यालयों में कार्रवाई कर सकेगा.
• विसलब्लोअर को संरक्षण प्रदान करेगा.
• लोकपाल के सदस्यों और अध्यक्ष का चुनाव पारदर्शी तरीके से किया जाना चाहिए.
• लोकपाल के किसी अधिकारी के खिलाफ यदि कोई शिकायत होती है तो उसकी जांच पारदर्शी तरीके से एक महीने की भीतर होनी चाहिए.


जन लोकपाल की खूबियां और सरकारी प्रारूप में खामियां

विषय: राजनेता, नौकरशाह और न्यायपालिका पर अधिकार क्षेत्र
सरकारी विधेयक: सीवीसी का अधिकार क्षेत्र नौकरशाहों और लोकपाल का राजनेताओं
पर। न्यायपालिका पर कोई कानून नहीं
जन लोकपाल: राजनेता, नौकरशाह व न्यायपालिका दायरे में
क्यों?: भ्रष्टाचार राजनेता और नौकरशाहों की मिलीभगत से ही होता है। ऐसे में सीवीसी और लोकपाल को अलग अधिकार क्षेत्र देने से इन मामलों को व्यवहारिक दृष्टि से निपटाने में दिक्कतें पेश आएंगी। यदि किसी केस में दोनों संस्थाओं के अलग निष्कर्ष निकलते हैं तो कोर्ट में आरोपी के बचने की आशंका ज्यादा होगी.

विषय: लोकपाल की शक्तियां
सरकारी विधेयक: सलाहकारी निकाय होना चाहिए
जन लोकपाल: किसी की अनुमति के बगैर ही जांच प्रक्रिया शुरू करने का अधिकार होना चाहिए
क्यों?: सलाहकारी भूमिका में यह सीवीसी की तरह अप्रभावी होगा.

विषय: विसलब्लोअर संरक्षण
सरकारी विधेयक: इनकी सुरक्षा के लिए सरकार ने हाल में एक बिल पेश किया है जिसमें सीवीसी को सुरक्षा का उत्तरदायित्व दिया गया है.
जन लोकपाल: सीधे तौर पर इनकी सुरक्षा का प्रावधान
क्यों?: सीवीसी के पास न तो शक्तियां हैं और न ही संसाधन, जो विसलब्लोअर की सुरक्षा करे.

विषय: लोकपाल का चयन और नियुक्ति
सरकारी विधेयक: प्रमुख रूप से सत्ता पक्ष और विपक्ष के सदस्यों से बनी एक कमेटी द्वारा इनका चयन जन लोकपाल: गैर राजनीतिक व्यक्तियों की एक कमेटी द्वारा चयन
क्यों?: कोई भी राजनीतिक पार्टी हो, वह सशक्त और स्वतंत्र लोकपाल नहीं चाहती

विषय: लोकपाल की पारदर्शिता और जवाबदेही
सरकारी विधेयक: कोई प्रावधान नहीं
जन लोकपाल: कार्यप्रणाली पारदर्शी हो। किसी लोकपाल कर्मचारी के खिलाफ शिकयत का निस्तारण एक महीने के भीतर होना चाहिए और दोषी पाए जाने पर उसको बर्खास्त किया जाना चाहिए.

विषय: भ्रष्टाचार मामलों में सरकार को हुए धन की क्षतिपूर्ति
सरकारी विधेयक: कोई प्रावधान नहीं
जन लोकपाल: भ्रष्टाचार के कारण सरकार की हुई किसी भी मात्रा की आर्थिक क्षति का आकलन ट्रायल कोर्ट करेगी और इसकी वसूली दोषियों से की जाएगी


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें